July 26, 2024 10:42 pm

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दिल के भरे रिवाल्वर में बेचैनी जोर मारती है।

हिंदी दिवस पर विशेष।

प्रशांत जयवर्द्धन।।

हिंदी दिवस की बधाई। हिंदी माथे की बिंदी। नई वाली हिंदी। हिंदी दिवस वाली हिंदी। 14 सितंबर वाली हिंदी। फिर हिंदी सप्ताह, पखवाड़ा और माह वाली हिंदी। आज आचमन की बेला है। कार्यालय, विद्यालय और विश्वविद्यालय हिंदी मय रहेंगे । सुप्रभात , नमस्कार और हिंदी में हस्ताक्षर कि होड़ लगेगी। मीडिया में बहस छिड़ेगी। अख़बारों में लेख होंगे। सोशल मीडिया के संदेश तूलिका विविध रंग होंगे। हिंदी का शिक्षक भौचक खड़ा होगा। कौतुहल से घिरा होगा। उसे आज विशेष होने का आभास होगा। फिर एक एक करके सभी चले जायेंगे। शाम ढल जाएगी। दिन निकल जायेगा । सप्ताह, पखवाड़ा , माह निकल जायेंगे। हम फिर पटरी पर लौट आएंगे। एक समानांतर पटरी जो वर्ष भर एक जैसी चलती है।

अंतर्मन का अहसास, मातृ भाषा के साथ।

अपने आने वाली पीढ़ियों को भाषा का उपहार दें। एक पुस्तक उपहार दें। इस बार हिंदी दिवस डिजिटल एहसास के साथ नहीं। शब्दों और वाक्यों की बगिया में खिले किसी पुस्तक रूपी रचना को देकर करें। भाषा और किताब दोनों को आप संजो कर रख सकते है, अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए। वरना अपनी ही संतानों को भाषा के स्पंदन से अवगत कराना। किताबों के होने का अर्थ समझाना बड़ा दुखदायी होता है।

शब्द ब्रम्ह हैं ।

किसी अकादमिक, अध्ययन कक्ष, पुस्तकालय भवन और सरकारी खरीद का हिस्सा बनने से कहीं ज्यादा जरुरी है एक अच्छी किताब आपके बिस्तर के सिरहाने राखी हो । आराम करते हुए भले ही थोड़े से अंश जो आप रोज पढ़ते है वह आपको ऊर्जान्वित करती है। ऊर्जा शब्द, वाक्य, विचार और चिंतन में भी है। शब्द ब्रम्ह हैं । चिंतन मार्ग। माध्यम मार्ग पर केवल चलना है। भाषा भी निरंतर चलायमान है। पुस्तकें आपको उनसे मिलवाने में सफल साबित होगी जो यह समझते हैं, भाषा साँस लेती है और धड़कती है। जिंदगी को थोड़ा बदले, मन की खिलड़कियाँ खोले, दुनिया को बेहतर बनाने के लिए किताबों के साथ जुड़े।

जिंदगी बुरादा तो बारूद बनेगी ही।

मुक्तिबोध कहते हैं ‘ मनुष्य इतना अकेला क्यों है? ‘अँधेरा मेरा खास वतन जब आग पकड़ता है।’ कविता जीवन का सबसे मार्मिक अंश है। यह आत्मसंघर्ष से अर्जित किया जाता है। भाषा का भी अपना आत्मसंघर्ष है। अपनी लय और ताल है । भाषा केवल बाहर नहीं बल्कि भीतर भी निरंतर चलती है। एक शांत नदी की तरह। सरस्वती और निरंजना की तरह। इतिहास और भूगोल कम हैं लेकिन भाषा के सहारे मन की पड़ताल ज्यादा है।आम की अमराई, पर्वत की ऊंचाई और तराई कि गहराइयों से गुजरते हुए काफिले का ठहर जाना क्या होता है यह भाषा से बेहतर कौन समझता है।

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