November 21, 2024 10:39 am

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एजुटेच शिक्षा अवसर या भविष्य की चुनौती

पढ़ाई लिखाई में आज तकनीक का बोलबाला है। शिक्षक अपने शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न साधनों की मदद लेता है वही विद्यार्थी कॉन्सेप्ट्स क्लियर करने और उम्दा नोट्स के लिए कई ऑन लाईन  माध्यमों से घिरा रहता है। शिक्षण और उपागम को प्रभावित करने वाले ये साधन एजुटेच टेक और शिक्षण प्राद्यौगिकी के नाम से जाने जाते है। मूल रूप से इनके  दो कार्य  है  शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति और शिक्षण कार्य का यंत्रीकरण। पिछले एक दशक में एजुटेच बाजार और ग्राहक बनाने में सफल रही है। एजुटेच स्टार्टअप्स का कारोबार अरबों रूपए का हो गया है। एजुटेच ऐप से भरे मोबाइल फ़ोन अब शिक्षा प्रयाय बन चुके हैं।

सस्ती इंटरनेट सेवा ने इसे और बढ़ावा दिया है। एक अनुमान के मुताबिक अगले पच्चीस वर्षों में सौ करोड़ विद्यार्थी स्नातक होंगे। 2040 तक इंटरनेट सुविधाप्राप्तकर्ता संख्या डेढ़ अरब को पार कर जाएगी। पिछले दस वर्षों में स्मार्ट फ़ोन की कीमत में काफी गिरावट आयी है। वैश्विक स्तर पर भारत एक ऐसा देश है जहाँ मोबाइल इंटरनेट की दरें सबसे सस्ती हैं।

सरकारें भी इस प्रकार की शिक्षा को प्रोत्साहित करने में पीछे नहीं हैं।  देश में नेशनल एजुकेशन आर्किटेक्चर बनाया गया है। पीएम ई -विद्या कार्यक्रम 2020 के तहत ई – शिक्षा को आसान बनाने के लिए विद्यालय स्तर  पर इसकी शुरुवात की गयी है। ई शिक्षा का लाभ 25 करोड़ स्कूली छात्रों को और 4 करोड़ उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों को मिलना है। ई पाठशाला पोर्टल,स्वयंप्रभा और दीक्षा जैसे कार्यक्रम ऑनलाइन शिक्षा को आगे ले जाने का कार्य कर रहे है।  केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने आईआईटी के सहयोग से स्वयं और मूक्स पोर्टल  कोर्स करने और सरदित प्राप्त करने का अवसर छात्रों को दिया है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि ई लर्निंग के अपने फायदे है और यह पढ़ाई का एक सरल और सुगम माध्यम है। तकनिकी जुड़ाव ने पढ़ाई को रोचक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन इसके अपने नुकसान भी हैं। तकनीक के मनोवैज्ञानिक चोट को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

मोबाइल और लैपटॉप के सहारे लगातार काम करने से काम उम्र में ही बच्चों को आँखों में दर्द, नजर का कमजोर होना, पीठ और कन्धों में दर्द की शिकायत देखने को मिल रही है। नवजातों में एडीएचडी और  ऑटिस्म के लक्षण के पीछे मोबाइल बहुत बड़ा कारक माना जाता है।

एक सर्वे के अनुसार भारत के 33 प्रतिशत माता पिता इस बात को लेकर चिंतित है की ऑनलाइन सीखने की तकनीक ने बच्चों के सीखने और प्रतियोगी लक्षणों पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। तकनीक के आदि होकर बच्चे कब उसके ग्राहक हो गए यह समझते समझते काफी देर हो चुकी होती है। विद्याथियों में अवसाद और तनाव के साथ भटकाव के मामले बढ़ें हैं। इससे इंकार नहीं किय अजा सकता कि जिस तेजी से एजुटेच टेक का प्रसार हो रहा है यह भविष्य में संघर्ष और चुनौती के रूम में सामने होगा।

 

 

 

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