राजनीतिक मजबूरियों वाला बजट
माननीय मुख्यमंत्री के वक्तव्य में जो बजट झलक रहा है, वह कहीं-कहीं गठबंधन सरकार की राजनीतिक मजबूरियों का प्रतीक लगता है। यह बजट राज्य की जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं है।
*रोजगार का अभाव*
इस बजट में न तो नौकरियों का कोई ठोस प्रावधान दिखता है, न ही रोजगार सृजन की कोई योजना। झारखंड, जो “लेबर सप्लाई” के मामले में अग्रणी राज्य माना जाता है, उसकी इस पहचान मिटाने का कोई प्रतिबिंब इस बजट में नहीं दिखाई देता।
**बजट का आकार और खोखलापन:**
वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर द्वारा आज पेश किए गए 1.45 लाख करोड़ रुपये के बजट (2025-26) में “स्वाभिमान”, “स्वावलंबी विकास”, “नौकरी नीति” और “युवा नियोजन” जैसे शब्दों का इस्तेमाल तो हुआ है, पर ये महज दिखावे या खानापूर्ति लगते हैं।
**युवाओं की निराशा:*
राज्य की बड़ी युवा आबादी साल-दर-साल सरकारी आश्वासनों के भरोसे समय गंवाती जा रही है। उनके लिए इस बजट में कोई नई उम्मीद नहीं दिखती।