चुनाव समीक्षा 1
झारखंड के आदिवासियों पर घड़ी पकड़ रखने वाली भाजपा आज आदिवासियों से पूरी तरह विमुख हो गई है। विधानसभा के चुनाव परिणाम तो ये ही बताते हैं। कभी दुमका जैसे आदिवासी बहुल इलाके में शिबू सोरेन जैसे दिग्गज को भी एक-एक वोटो के लिए तरसा देने वाली भाजपा के अब झारखंड में बुरे दिन है।
भाजपा की ऐसी दुर्गति एक दिन का नतीजा नहीं है पूरे 2 दशक लगे हैं भाजपा को रसातल की ओर प्रस्थान करने में। जिन्हें सिरमौर मानकर राज्य की जिम्मेदारी सौंप जाती रही, वह सत्ता के मध्य में ऐसे चूर रहे कि उन्होंने आगे की कल्पना भी नहीं की ! आरएसएस ने जिन स्वयं सेवकों को साथी का दर्जा दिया था। सत्ता में आने के बाद भाजपा ने उन्हें कार्यकर्ता मान लिया। लिहाजा दूरी बढ़ती गई।
आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा जैसे-जैसे कटती गई, मिशनरिया हावी होती चली गई । सुदूर क्षेत्रों में पहले आरएसएस का भाव सेवा का रहता था। किंतु मिशनरियों ने भी अपने लोगों को संघर्ष के लिए प्रोत्साहित किया। परिणाम सामने है । आबादी में 4% होते हुए भी झारखंड में आठ ईसाई विधायक बन गए। लेकिन दो तिहाई आबादी में पैठ रखने का दावा करने वाली भाजपा को सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा। वह सीट भी झारखंड मुक्ति मोर्चा से आयातित चंपई सोरेन के भरोसे।
झारखंड में आदिवासी समाज के बीच मीडिया मार्केटिंग नहीं चलने वाली है अगर भाजपा को फिर से अपना खोया हुआ प्रभुत्व हासिल करना है तो उसे आदिवासी समाज के जड़ से जुड़ना होगा। और जो आदिवासियों की मूल समस्याएं हैं उनके निराकरण का उपाय करना होगा।