1. जयराम महतो को बहुत हल्के में लेना
लोकसभा चुनाव में जयराम महतो की ताकत देखने के बाद भी प्रदेश नेतृत्व द्वारा जयराम महतो को इग्नोर करना भाजपा को बहुत भारी पड़ गया। आजसू से तालमेल की बात तो ठीक है, जयराम महतो को दो-तीन सीटें देखकर मनाया जा सकता था लेकिन जयराम महतो की ताकत को अनदेखा किया गया जो अंततः एनडीए की हार का सबसे बड़ा कारण बना।
2. “डेमोग्राफी में चेंज” जैसे मुद्दे का संथाल परगना में पीट जाना।
झारखंड में खासकर संथाल परगना इलाके में मुसलमानो द्वारा आदिवासियों की जमीन जायदाद हड़पने और लभ जिहाद चलाने और उसके चलते आदिवासियों की जनसंख्या में कमी! मुद्दा तो उठाया गया। एक नेरेटिव गढ़ने की कोशिश की गई। लेकिन ये मुद्दा संथाल परगना के आदिवासियों ने ख़ारिज कर दिया। नतीजन भाजपा अपनी खुद की जीती सीटों पर भी हार बैठी। देवघर, साहिबगंज, सारठ, गोड्डा इसके साफ़ उदाहरण हैं।
3. हेमंत सरकार द्वारा सुरु किए गए मईया सम्मान योजना की काट में भाजपा द्वारा गोगो दीदी योजना के ज़रिए महिलाओं को 2100 रुपए प्रति महीने देने की बात तो जरूर चलाई गई. मगर मईया सम्मान योजना के खिलाफ़ कोर्ट में याचिका दायर करना भी एनडीए के खिलाफ़ गया। हालंकि भाजपा अपनी जगह सही थी परंतु जेएमएम ये बात फैलाने में कामयाब रहा कि भाजपा मईया सम्मान योजना के खिलाफ़ है।
4. यूसीसी के खिलाफ़ आदिवासी समाज का रण।
गृह मंत्री ने झारखंड में यूसीसी (समान आचार संहिता) लगाने की बात कह कर अपनी पार्टी का ही नुकसान कर दिया। हालांकि इस घोषणा से उनका मकसद अपने वोटरों को
एकजूट करना था। हुआ ठीक उल्टा । आदिवासियों ने एकजूटता दिखाई और गेम को पलट दिया। भाजपा के जो वोटर हैं उनमें हमेशा संवेदनशील मुद्दों लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई देती।
5. ओबीसी वोटों का बिखराव
6. दो टर्म के बाद तीसरे टर्म फिर से रिपीट करने की भूल
दो टर्म जान अभी भी बनने के बाद धीरे-धीरे जनता में और कार्यकर्ताओं में भी उसे व्यक्ति विशेष के खिलाफ एक नेगेटिव वातावरण लगता है। नए उभरते नेताओं को लगता है कि इस व्यक्ति के कारण मेरा राजनीतिक कैरियर चौपट हो जाएगा। आता अंदर खाने से उसे जन्म प्रतिनिधि का विरोध शुरू हो जाता है। वही जानता को भी लगता है कि जिस जन प्रतिनिधि को हमने जीताया वो हमारे क्षेत्र के लिए कुछ ख़ास नहीं कर पा रहा। हालंकि उसकी मजबूरियां कोई समझना कोई भी नहीं चाहता। कभी कभी व्यक्तिगत कुंठा भी हार का कारण बनती है।