December 2, 2024 9:08 pm

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झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए अहम पड़ाव है, विधानसभा चुनाव की जीत

संतोष पाठक

रांची: झारखंड में महागठबंधन चुनाव जीतने में कामयाब रहा है। यह साबित हो गया है कि झारखंड में आदिवासीयों के एक मात्र लीडर हेमंत सोरेन हैं। झारखंड के इस प्रचंड जीत का अगर श्रेय किसी को जाता है तो वह हैं मईया सम्मान निधि और झामुमो की स्टार कल्पना सोरेन को। यह वही दोनों फैक्टर हैं किसने चुनाव में जीत का बड़ा अंतर पैदा किया। हां, एक कैटेलिस्ट भी हैं वो है जयराम महतो की पार्टी।
चुनाव परिणाम इस बात की तसदीक करते हैं बढ़ी हुई दाढ़ी में झारखंड के आदिवासी हेमंत सोरेन में गुरु जी की छवि में देखते हैं।
चुनाव में सारठ विधानसभा क्षेत्र घूम रहा था। हम लोग चाय पीने के लिए अपनी गाड़ी एक चाय दुकान के पास खड़ा कर रखे थे, इतने में मोटरसाइकिल पर सवार दो युवक जो एक हाथ में जेएमएम का झंडा और दूसरे हाथ में कांग्रेस का झंडा लहराते हुए एक नारा लगा रहे थे । नारा पहली बार सुना था, हमें थोड़ा आश्चर्य हुआ। नारा था “कल्पना की बात पर, मोहर लगेगा हाथ पर”। मैंने वहां मौजूद अपने साथियों से कहा कि ये नारा इस चुनाव का सबसे बड़ा नारा है। आज मेरी बात अक्षरतः सत्य हुई है। नारे ने अपना असर दिखा दिया है। इसी नारे के सहारे कांग्रेस अपने पिछले कार्यकाल की सीटें बचाने में कामयाब रही है। सबसे बड़ी बात है की महागठबंधन के घटक दलों ने झारखंड में आपस में बेहतर तालमेल बनाया और चुनाव में एकजूटता से लडे। इस चुनाव ने आजसू को पूरी तरह खारिज कर दिया या यूं कहें जयराम महतो की पार्टी ने आजसू को आइना दिखा दिया है तो ये अतिश्योक्ति नहीं होगी। भाजपा को भी जयराम के चुनाव लड़ने का भारी खमियाजा भुगतना पड़ा है। आरजेडी के जो भी विधायक जीत कर आए हैं। उनकी जीत महागठबंधन के एकजुटता की जीत है। क्योंकि कोडरमा में तमाम प्रयासों के यादवों के पोप लालू प्रसाद यादव अपने चेले सुभाष यादव को चुनाव जितवाने में नाकाम रहे। तय है कोडरमा में यादवों के मत में बिखराव हुआ है। अनपुर्णा देवी यहां लालू यादव पर भारी पड़ी है। दो देवियों की जोड़ी ने कोडरमा में माय समीकरण को ध्वस्त कर दिया है।

चुनाव के बाद सरकार गठन में अब हेमंत पर पिछली सरकार की तरह किसी के दबाव में काम करने की निर्भरता नहीं रहेगी। मंत्रिमंडल के गठन में हेमंत सोरेन अब कांग्रेस के बजाय राजद को प्राथमिकता देना पसंद करेंगे। चुनाव के बाद हेमंत सोरेन को अपनी ताकत का पूरी तरह से अंदाजा हो गया है। वह जान गए हैं कि भाजपा एंड कंपनी से लड़ने के लिए उन्हें अब किसी भी बैसाखी की जरूरत नहीं है। अतः संभव है वो गठबंधन हित में कांग्रेस को 2-3 मंत्रालय तो दे सकते हैं मगर कांग्रेस को आगामी सरकार में पिछली बार की तरह बहुत ज्यादा तबज्जो ना मिले। ये भी हो सकता है कि हेमंत ममता बनर्जी की राह पर चलें। गठबंधन में रहते हुए केंद्र सरकार से बेहतर सहयोग बनाने का प्रयास करें। क्योंकि उनको पता है। सारे कमिटमेंट बिना फंड के पूरे नहीं हो सकते और लड़ाई करने से तो फंड मिलना संभव नहीं है। इस बड़ी सफलता के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और इंडिया गठबंधन के सभी घटक दलों को मेरी बधाई।

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