संतोष पाठक
रांची: झारखंड में लोकतंत्र के महापर्व की धूम है। सत्ता प्राप्त करने की लड़ाई अपने चरम पर है, चुनाव परिणाम आने में महज 13 दोनों का समय बचा है। ऐसे में, सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों जोर-शोर से अपनी अपनी बात जनता के बीच पहुंचने में लगे है। दोनों तरफ के प्रत्याशी और नेतागण अपने अपने तूणीर के विष से बुझे विषैले तीरों से एक दूसरे पर जम कर हमले कर रहे हैं।
जिस तरह से महाभारत खत्म होने के बाद श्री कृष्ण पहाड़ पर ऊंचाई पर रखे हुए घटोत्कच के नरमुंड से पूछा कि सच बताओ, इस लड़ाई में सबसे ज्यादा कौन मुखरता से लड़ा है।
तो घटोत्कच के नरमुंड ने उसके जवाब में कहा था कि पूरे युद्ध में मैंने तो बस एक बात ही देखी है। की दोनों तरफ से केवल एक ही आदमी लड़ रहा था और वह आप हैं श्री कृष्ण।
इसी तरह पत्रकारिता के लिए झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों में विधानसभा चुनाव में न्यूज़ कवरेज के लिए हुई यात्रा के दौरान मैंने जो देखा है, महसूस किया है, उसे आप सुधी पाठकों के बीच में रख रहा हूं।
मुझे तो इस लड़ाई में केवल तीन ही लोग दिख रहे हैं। एक तरफ तो इंडी गठबंधन का नेतृत्व झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन करते दिखाई दे रहे हैं । वहीं दूसरी तरफ असम के मुख्यमंत्री हिमंता विश्व शर्मा उन दोनों के खिलाफ जबरदस्त चक्रव्यूह रचने में कामयाब रहे हैं। यह कहा जाए कि लड़ाई हेमंत बनाम हेमंत की है तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। देश के दो मुख्यमंत्रियों के बीच का यह संघर्ष रण-समर में साफ दिखाई दे रहा है और दिलचस्प बन गया है।
झामुमो को अगर कोई सबसे ज्यादा परेशान करने में कामयाब रहा है तो निश्चित तौर पर वह नाम हेमंत विश्व शर्मा का ही है। बाबूलाल मरांडी द्वारा उठाए गए “संथाल डेमोग्राफी चेंज”में वाले मुद्दे को जिस तरह से हिमंता ने लपक लिया है और लगातार उस पर मुखर हैं। यह उनके सशक्त जुझारुपन को बखूबी बयां कर रहा है। भाजपा के सत्ता में आने के बाद ताजपोशी भले ही युधिष्ठिर (बाबूलाल मरांडी) की होगी किंतु मैदानी लड़ाई में तो दोनों तरफ मुझे हेमंत ही दिखते हैं। भाजपा के “अर्जुन” हेमंत (हेमंता विश्व शर्मा) ने अपनी बाजीगरी का प्रभाव असम के बाद झारखंड में भी सकुशल दिखलाया है।
दूसरी तरफ से मुकाबले में डट कर खड़े हैं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन दोनों। हेमंत भाजपा के कॉर्पोरेट विज्ञापन, पूरे देश के नेताओं की फौज, तमाम आरोपों से विचलित न होते हुए पूरी तरह से, अडिग और मुखर होकर उनके आरोपों का मुकाबला मजबूती से कर रहे हैं। वहीं इस महासंग्राम में कल्पना सोरेन के साथ ने हेमंत सोरेन की मजबूती में दुगना इज़ाफा कर दिया है। मैया सम्मान योजना के पक्ष में कल्पना की मुहिम ने अवाम का ध्यान अपनी ओर खींचने का काम किया है। कल्पना की रेलियों में उमड रही भीड़ स्वतः ही उनकी लोकप्रियता बयां कर रही है। मैंने कल्पना सोरेन के सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करने के पहले ही दिन लिखा था की झारखंड मुक्ति मोर्चा को स्टार प्रचारक मिल गया है, मेरा यह कथन अक्षरतः सत्य हुआ है।
जल-जंगल-जमीन और बेटी-रोटी-माटी के संरक्षण की लड़ाई कांटे की है। पहले वोटिंग 13 तारीख को है और दूसरी वोटिंग 20 नवंबर को है परिणाम 23 को घोषित होंगे कौन जीतेगा कौन हारेगा यह कहना अभी मुश्किल है किंतु सरकार कोई भी बनाए सत्ता पक्ष और विपक्ष के सीटों का अंतर 10 से भी कम रहने की उम्मीद है।