चुनावी लड़ाई में प्रवासी वोटरों की उदासीनता और उनका कम वोट प्रतिशत राजनीतिक दलों के लिए कोई खास महत्त्व नहीं रखता था। चुनाव आयोग के प्रयासों और मतदाता जागरूकता से चुनावों में बड़े उलटफेर देखे जा रहे है। झारखंड इस उलटफेर का जीवंत उदाहरण बना है और लोक सभा चुनावों में भी इन मतदाताओं के प्रभाव को इंकार नहीं किया जा सकता।
रामगढ़ में हुए उप चुनाव में आजसू की उम्मीदवार सुनीता चौधरी ने कांग्रेस प्रत्याशी बजरंग महतो को 16 हजार से अधिक मतों से चुनाव हराया था। 2 मार्च को आये परिणामों में एनडीए उम्मीदवार की जीत में पोस्टल वोट अहम् साबित हुए। सबसे ज्यादा पोस्टल वोट भी श्रीमति चौधरी को ही मिला था। इन्हें 54.1 फीसदी पोस्टल वोट प्राप्त हुए थे। राजनीति में इस प्रकार के उल्ट फेर अक्सर देखने को मिल जाते है।देश के कई राज्यों के चुनावों में पोस्टल वोट करने वाले मतदाता भौचक परिणाम सामने लाने वाले साबित हुए हैं।
रांची के मांडर विधानसभा उपचुनाव के दौरान भी 4871 दिव्यांग मतदाता थे जिनमें से अधिकांश ने पोस्टल वोट डाला था। वहीं 80 प्लस उम्र वाले मतदाताओं की संख्या 8 हजार के आस पास थी। चुनाव परिणाम 26 जून को आये थे। युवा प्रत्याशी शिल्पी नेहा तिर्की को इन तीनों तबकों का समर्थन प्राप्त हुआ। विधान सभा चुनाव में जिन सीटों पर कांटे की टक्कर रहती है उस लिहाज से यह आंकड़े उलटफेर करने के लिए काफी है। अगर इन्हीं आंकड़ों के साथ पहली बार मत डालने वाले युवा मतदातों को जोड़ दिया जाय तो यह संख्या काफी बड़ी हो जाती है। जो किसी भी प्रत्याशी के हार और जीत के अंतर में उलटफेर कर सकती है।
आरटीआई से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत की कुल आबादी में 4.85 करोड़ 18 से 19 वर्ष के हैं। भारत दुनिया की सबसे बड़ी प्रवासी आबादी वाला देश है। करीब 1.35 करोड़ अनिवासी भारतीय दुनिया भर में फैले हुए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 99,844 पंजीकृत प्रवासी मतदाताओं में से 25,606 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। वहीं चुनाव के दौरान राज्य के 2लाख 20 हजार युवा मतदाताओं ने पहली बार अपने मत का प्रयोग किया था।
राजनीतिक दल भी अब इस प्रकार के मतदाताओं को नजरअंदाज करके नहीं चलते। प्रवासी वोटर, दिव्यांग, वृद्ध और पहली बार मत डालने वाले मतदाताओं के लिए दल और प्रत्याशी द्वारा विशेष रणनीति बनायी जाती है।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने प्रवासी वोटरों को लुभाने केलिए हिंदी अस्त्र चला था। कर्नाटक में कई प्रवासी रहते है जो गुजरात से लेकर झारखंड जैसे कई राज्यों से है। प्रवासी वोटरों का महत्त्व समझते हुए भाजपा ने प्रवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए अलग रणनीति तैयार किया। राजनीतिक दल इस प्रकार के मतदाताओं के वोट को अवसर वाला वोट मानते है। इस प्रकार के वोट से कोई भी राजनीतिक दल वंचित नहीं रहना चाहता है। आगामी लोक सभा चुनाव को देखते हुए रजनीतिक दल अभी से प्रवासी वोटरों पर नजर गड़ाए हुए हैं। संपर्क साधनों जैसे सोशल मीडिया के फेसबुक और व्हाट्सप का प्रयोग खुल कर किया जा रहा है।